चित्त प्रवाह!?



हमें किस आधार पर अपना जीवन चाहिए?
हमें अपनी हद,सामर्थ्य,नजरिया,आस्था,आत्म प्रतिष्ठा को कम से कम अपनी नजर में बचाये रखना चाहिए।

महापुरुषों से विशेष कर ईसामसीह,सुकरात,मीरा आदि से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?

हम किसी को संतुष्ट नहीं कर सकते।

दुनिया जिसे अपना आराध्य मानती है,उससे भी दुनिया संतुष्ट नहीं हुई है।

हमारा रास्ता जो है वह क्या है ?कुल,संस्थाओं,भीड़ आदि द्वारा तय? नहीं ,कदापि नहीं। सबका अपना स्तर होता है।

कुल,सस्थाओं,भीड़ में किसी का अकेला हो जाने का मतलब यह नहीं है कि वह अकेला खड़ा व्यक्ति गलत हो गया?

कबिरा खड़ा बजार में.......

खैर!?

व्यक्तिता और कुलता,व्यक्तिता और संस्थागता में सामंजस्य कैसे स्थापित हो?

लेकिन कोई महान कौन हुआ है? परम् से जुड़ने की शर्तें क्या हुई हैं?

कुल,पासपड़ोस,संस्थाओं,समाज में लोग हमारे खिलाफ आकर खड़े  हो गये हैं या हमारी आलोचना ही करते रहते हैं,इससे क्या?कुदरत,मानवता,आत्माविज्ञान आदि में हमारी क्या छबि बन रही है ?यह महत्वपूर्ण है।

हम देख रहे हैं कि परिवारों,संस्थाओं,समाज आदि में व्यक्ति व्यक्ति के बीच मनोवैज्ञानिक स्थिति क्या है?नजरियात्मक स्थिति क्या है? यहां तक कि पतिपत्नी,भाईबहिन,प्रेमी प्रेमिका,पिता बेटा आदि के बीच भी सूक्ष्म स्थिति क्या है?

आज जो अकेला खड़ा है,वह भी अपने जगत का बादशाह हो सकता है।महत्वपूर्ण है कि उसका नजरिया,आस्था,चेतना किस बिंदु पर टिका है या यात्रा पर है? बिंदु तो अनन्त हैं।

कुल,संस्थाओं आदि का प्रबंधन अग्रिम स्तर को ध्यान में रखते हुए होना चाहिए क्योकि कुल,संस्थाओं की मर्यादा से भी ऊपर हैं अन्य मर्यादाएंकुल व संस्थाओं से बढ़कर।

कुछ वर्ष पहले की बात है।एक महिला ने फेसबुक पर एक आईडी बनायी - दहेज पीड़िता के नाम से। जो वर पक्ष की आलोचना करती रहती थी। हमने उसके खिलाफ व्यवहारिक तथ्यों के आधार पर लिखना शुरू किया था। घरेलू अपराधों को लेकर हम सब को सघनता से विचार करने की जरूरत है। घरेलू या कुल स्तर पर अनेक ऐसी बातें हो रही हैं जो कि वास्तव में अनुचित है लेकिन समाज में उनका महत्व बना हुआ है।

विभिन्न स्तरों में से एक स्तर है - कुल जो कि एक व्यवस्था के निमित्त है। जहां एक व्यक्ति का काम प्रशिक्षित होता है।जो कुल की मर्यादा में बंधा होता है।जिसका प्रभाव समाज में चमकता हुआ विश्व भर में तक प्रतिष्ठित हो सकता है। इसी तरह पास पड़ोस में परस्पर सम्बन्ध कुल संस्कृति को जोड़ते हुए एक प्रकार से सामाजिक संरचना ,कार्यात्मक संरचना की ओर मानव को ले जाता है।

गीता में लिखा है कि भूतों को भेजेगा तो भूतों को प्राप्त होगा....

यह 'भजना' क्या है?'भजना'-क्या है? चिंतनमनन,सोंच,नजरिया आदि के साथ साथ हमारा अचेतन मन क्या हो रहा है?क्या दिशा दशा पा रहा है ?यह ही हमारे लिए भजन है।

भौतिक रूप से,शारिरिक रूप से क्या स्थिति है?इससे हट कर हजार गुना हमारी सूक्ष्म स्थिति होती है।सूक्ष्म स्थिति से भी आगे हजारों गुणा कारण स्थिति अनन्त की ओर। कुल,परिजन,रिश्ते आदि के बीच हमारे सिर्फ दिखावी ,भौतिक नजदीक या दूरस्थ सम्बन्ध हो सकते हैं लेकिन इससे भी हजार गुणा यह सम्बन्ध अंदुरुनी होते है,सूक्ष्म जगत से होते है। माँ हमसे कह चुकी हैं - यह मरे मिचे लोग तुम्हारे पास ही आते हैं? यह भी एक सत्य है।मनुष्य रूप में हाड़मांस शरीरों में बंधी ऊर्जाएं/आत्माएं किधर आकर्षित होगी जब वे यह हाड़मास शरीर त्याग देंगी? किसी ने कहा है कि खानदान व रिश्ते नातों में एक व्यक्ति ही जब ऊपर उठ जाता है तो सबका उद्धार कर देता है। भौतिक रूप से भी क्या देखा गया है? रिश्ते दारों में या परिजनों में कोई एक जब कोई बड़ा नेता,विधायक,मंत्री आदि या प्रशासकीय अधिकारी आदि बन जाता है तो वह अन्य के लिए भी सहारा हो जाता है। इसी तरह जो यह शरीर त्याग चुके हैं,तो वे किधर अपना काम चलाएंगे?

इसी बहाने एक और प्रसंग याद आ गया ।एक लड़की एक लड़के से आकर्षित थी।दोनों में दोस्ती काफी घनिष्ठ थी।पास पड़ोस,परिजनों को भी पता थी। सब इसे सामान्य ही देख रहे थे।जिसकी नजर ही गलत थी,उनको छोड़ दो। समय आगे बढ़ा।घर वालों ने लड़की की अन्यत्र शादी कर दी ।कोई बात नहीं।सब ठीक रहा ।शादी हो गयी।चार पांच साल दाम्पत्य जीवन ठीक चलता दिखता रहा।सबकी अपने अपने जीवन की प्राथमिकताएं होती हैं।जब उनमें टकराव हुआ तो ऐसे में जीवन का शान्ति सुकून व संतुलन गड़बड़ाने लगा।  सारी कायनात के बीच स्थूल,सूक्ष्म व कारण में कौन करीब में।खड़ा नजर आ रहा था? वही न?जिससे दोस्ती रही थी।दोनों अब भी एक दूसरे के मददगार थे।इस शरीर से किसके साथ रह रहे हैं,इससे क्या? कहते हैं कि शादी सात जन्मों का बंधन होता है?जोड़ियां सातवें आसमान से बन कर आती हैं? लेकिन सारी कायनात के बीच किससे सहज रिश्ता था?

सारी कायनात के बीच ये कुल,संस्थाएं,भीड़ आदि......?!  एक अकेला खड़ा व्यक्ति भी वास्तव में किसके साथ खड़ा होता है? सारी कायनात में क्या अपना तन्त्र रखता है? जो भीड़ को दिखाई नहीं देता। वास्तव में हमारे सुकून दाता अन्य होते हैं।हम जीवन जी अन्य के साथ रहे होते है? परिजनों,रिश्तेनातों,पासपड़ोसियों आदि के बीच हमारी भौतिक व सांसारिक स्थिति क्या है?हो सकता है कि हम अकेले खड़े हों?अब तक का पूरा जीवन हम अकेले जैसे तैसे जीते आये हों - रो कर या हंस कर?लेकिन हमारी अंदुरुनी स्थिति सबके प्रति,सारी कायनात के प्रति क्या रही है? लोग शायद मरके ही जान सकते हैं? इन हाड़ मास शरीरों में रह कर व  अपने भौतिक व सांसारिक व्यापार के बीच रह कर नहीं?

ईसा को जब सूली पर लटकाया जा रहा था तो उनके प्रति बहुमत किधर था? बहुसंख्यक किधर था? उस वक्त के नायक भी? इतिहास में क्या हुआ?उन बहुसंख्यक का क्या हुआ? कहते हैं गेंहू के साथ घुन भी पिस्ता है।मानव समाज में भी कुछ ऐसा ही है।लोग कहते हैं?हमारे साथ ही ऐसा क्यों हुआ?युद्ध में अनेक लोग निर्दोष मरते दिखते हैं।लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं होता। समूह में कुछ के साथ का ,कुछ के व्यवहार का असर कायनात के बीच होता है। हाड़ मास शरीरों के समूहों,कुल,परिजन आदि का असर पड़ता है। इस शरीर के त्याग के बाद सूक्ष्म शरीरों का भी समूह होता है।यह सत्य है कि जिस खानदान में एक भी सन्त कोई हो जाता है तो उस खानदान का उद्धार हो जाता है।जैसे खानदान में कोई एक विधायक,मंत्री आदि हो जाता है।लेकिन हम सब की नजर,समझ हम सब के सूक्ष्म जगत ,कारण जगत की ओर नहीं होती।

अमेरिका में सहज योग में एक अभ्यासी सन्त है।वे क्या कहते है? साधना में सफलता का मतलब है कि हमें सूक्ष्म शक्तियां दिखना शुरू हो जानी चाहिए। निन्यानवे प्रतिशत से भी ज्यादा को सिर्फ भौतिकता दिखती है,हाड़मास शरीर दिखता है।स्त्री-पुरुष दिखता है।हिन्दू मुस्लिम दिखता है?लेकिन सूक्ष्म शरीर नहींदिखता,कारण शरीर नहीं दिखता। वास्तव में यदि हम सफलता की ओर है ,हमें सूक्ष्मजगत भी दिखाना चाहिए।अपने पास पड़ोस,परिवार का चेतनात्मक,आत्मिक जगत भी दिखना चाहिए,आभास होना चाहिए।

एक दिन माँ  कह रही थी- तुम्हे ही मरे मिचे दिखाई देते हैं।
रिश्तेनातों,खानदान में जब कोई विधायक,मंत्री आदि हो जाता है तो क्या होता है उसके प्रति रिश्तेदारों,खानदान के अन्य सदस्यों में?ऐसे ही मरने के बाद..?! आत्माएं किधर बढ़ती हैं?
समीपता-दूरस्थता तो अलग बात,अनुकलता-प्रतिकूलता तो अलग बात ....पौराणिक।कथाएं क्या संकेत करती हैं? शरीर की मृत्यु के बाद आत्मा किसमें विलीन होती है? उसका उद्धारक कौन होता है?जब हम इस शरीर में होते हैं तो हम इसशरीर की ही आवश्यकताओं के आधार पर ही किसी व्यक्ति या कुल या संस्था आदि से नजदीकी बढ़ाते हैं लेकिन  इस शरीर के त्याग के बाद?




ईसा मसीह को जब सूली पर लटकाया जा रहना तो हम कह सकते हैं कि उस वक्त इस दुनिया में अल्पमत थे थे।बहुसंख्यक उनसे दूर था।लेकिन  वही बहुसंख्यक की आगामी पीढ़ियां..?!बहुसंख्यक भी वर्तमान में सिर्फ शांति,सुकून,संतुष्टि के भ्रम में होता है।देहांत के बाद वह भ्रम टूट जाता है।

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Wahhhh wahhhh Bahut hi उम्दा लेख,, बेहतरीन अभिव्यक्ति

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